Saturday 16 May 2015

Netaji shri shubhashchandra Boss


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कीमत बनाम भारत सरकार की क्षमता


उन दिनों की तरह नहीं जब मैं मोदी सरकार और भाजपा सरकार कहा करता था मगर आज मैं अपने देश के केंद्रीय शासन को सीधे तौर पर भारत सरकार कह कर संबोधित कर रहा हूँ| मोदी सरकार प्रथम श्रेणी के मजबूत जीवत के प्रधानमंत्री द्वारा सीमित शासक और अधिक शासन चलाई जा रही मजबूत सरकार का नाम नाम है| परन्तु “मोदी सरकार” शब्दों की सत्यता वहां आकर ख़त्म हो जाती है जब वो कुछ फाइलों को जनता के सामने खोलने से मना कर देती है| ऐसा करके वो एक पुरातन छाप वाली औपनिवेशिक भारत सकरार बन जाती है जिसे १९४७ में औपनिवेशिक स्थिति प्राप्त हुई थी और जो आज तक अंग्रेजों की ब्रितानिया सरकार के नक़्शे कदम पर चलती आ रही है|


चित्र  स्त्रोत – वर्ल्ड जनरल  नॉलेज

भारत जब अंग्रेजों का गुलाम था तब ना जाने कितने ही नामित-अनाम और प्रसिद्ध-अनजान व्यक्तियों ने अपने जीवन को खोने के साथ अपने परिवार के सदस्यों की जिंदगियां भी सिर्फ एक मकसद के लिए बर्बाद कर दीं थी और वो मकसद था भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाना| मगर जब सिर्फ उन्हीं के प्रयासों से देश स्वतन्त्र हुआ तो अंग्रेजियत के हिमायती इतिहासकारों ने अंग्रेजों से प्रभावित, एक पाक्षिक, और गलत इतिहास लिखते हुए उनका नाम लेना जरुरी ही नहीं समझा था| उन्हें सिर्फ उन व्यक्तियों के नाम याद थे जोकि एक अकेले परिवार से सम्बन्ध रखते थे जिस नेहरु वंश या गाँधी परिवार कहा जाता है| उन्होंने एक ऐसे वंश, जिसकी पुरातन उपस्थिति का कोई प्रमाण ही नहीं है, के क्रियाकलापों से मिलाने के लिए इतिहास को बदल-बदल कर संपादित कर लिखा| पश्चिमी तथा पश्चिम से प्रभावित देसी इतिहासकारों ने इन क्रांतिकारियों की प्रशंसा करने के बजाय उनको उग्रवादी और आतंकवादी घोषित करने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ी|

यही घटनाक्रम उस व्यक्ति के साथ हुआ जिसे नेहरु वंश के भगवद पितामह श्री मोहन दास करमचंद गाँधी – महात्मा गाँधी – ने जिन्हें “देशभक्तों का देशभक्त, देशभक्तों का युवराज” संबोधन दिया था| वह व्यक्ति देशबंधु चितरंजन दास का शिष्य, स्वामी विवेकानंद का समर्थक, दक्षिणेश्वर काली का बहुत बड़ा भक्त, श्रीमदभगवद गीता में विश्वास रखने वाला, तथा क्रांतिकारियों गतिविविधियों का प्रबल समर्थक था|

हम उसके बारे में बात कर रहे हैं

जिसके बारे में लिखते हुए लेखक सोचता है कि “था” का प्रयोग करें या “है” का

जो क्रन्तिकारी गतिविधियों, भेष बदलने, गायब होने, तथा देशभक्ति में सबका गुरु था

जिसने अपने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष ना करके उसको गुलाम बनाने वाले ब्रितानिया हुकूमत और अंग्रेजी ताज के खिलाफ युद्ध की उद्घोषणा करी थी

जिसने द्वितीय अंतरिम आज़ाद हिन्द सरकार, प्रथम आज़ाद हिन्द बैंक, तथा तृतीय आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की

जिसकी आज़ाद हिन्द फौज बेशक से हार गयी मगर अपने मकसद में कामयाब हो गयी क्यूंकि इसके सैनिकों की कथाओं और प्रयासों से १९४६  में रॉयल इंडियन नेवी क्रांति हुई थी जिसने देश ही आज़ाद करवा दिया था

जिसके बारे में अंतिम ब्रिटिश राज्यपाल अर्ल माउन्टबेटन ने जवाहरलाल नेहरु को चेतावनी दी थी कि यदि नेहरु ने उस व्यक्ति का समर्थन किया और वह व्यक्ति वापिस आया तो पूरा देश उसे थाली में रखके देना होगा

जिसकी रशिया में जीवित होने की खबर ने हमारे देश के तीसरे प्रधानमंत्री और वर्तमान औपनिवेशिक भारत सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट अटली को शिकायती पात्र लिखा था

जिसकी स्थिति, पात्रता, और सक्षमता किसी भी बड़े सम्मान से अधिक है परमवीर चक्र और भारत रत्न से भी अधिक

जिसको यदि भारत रत्न या परमवीर चक्र दिया जाए तो सम्मानों का सम्मान और ही अधिक बढ़ जाएगा

जिसको जीवित या मृत्यु घोषित नहीं किया जा सकता

जिसको यह देश और इसके देशवासी श्रद्धांजलि देने हेतु सक्षम नहीं है


इन्होने अपनीआई०सी०एस० की राजशाही नौकरी, अपने व्यवसाय, तथा पूरी जिन्दगी अपनी मातृभूमि को  स्वतंत्र करवाने हेतु बलिदान कर दी थी| जब यह साबित हो गया कि कांग्रेस गाँधी जी की तानशाही के बिना नहीं चल सकती तो उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया वो भी तब जब उन्होंने गाँधी द्वारा उतारे गए उम्मीदवार पटाभी सीतारामय्या को चुनाव में हर दिया था| उस हार के बाद गाँधी ने कहा था कि यह मेरी हार थी नाकि सीतारामय्या की क्यूंकि उसको मैंने अपने कन्धों पर उठाकर यह चुनाव लडवाया था| बदला लेने के लिए, गाँधी के अनुयायियों ने प्रत्यक्ष रूप से सुभाष बाबू पर दबाव डलवाकर उनको अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था| सुभाष चन्द्र बोस ने फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना कर दी थी तथा जब कांग्रेस के वार्षिक समेल्लन स्थल के पास रामगढ में इसका वार्षिक सम्मलेन हुआ था तब फॉरवर्ड ब्लॉक के पंडाल में कांग्रेस से भी अधिक भीड़ थी| रामगढ के इस समेल्लन में यह निश्चित हुआ था कि विदशों से मदद के बिना भारत को आज़ाद नहीं करवाया जा सकता|

इसी निर्णय को मानते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपने कलकत्ता के निवास में नज़रबंदी से गायब हो जर्मनी पहुंचे थे| हिटलर के मना करने के बाद तथा उसके सुझावानुसार नेताजी पुनः गायब हुए तथा १०० दिनों की पनडुब्बी यात्रा के बाद जापान जा पहुंचे थे| सिंगापुर में रास बिहारी बोस ने आज़ाद भारत केंद्र (इंडिया इंडिपेंडेंस लीग) तथा आज़ाद हिन्द फौज की कमान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दी थी| नेताजी ने बिना कोई समय गंवाय द्वितीय आज़ाद हिन्द सरकार तथा प्रथम आज़ाद हिन्द बैंक की स्थापना करने के साथ ही आज़ाद हिन्द फौज का पुनर्गठन किया था|



चित्र स्त्रोत – इंडियानेटजोन

इसके साथ ही उन्होंने यूनाइटेड किंगडम और यूनाइटेड स्टेट्स के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी| आज़ाद हिन्द फौज ने नेताजी की कमान में ब्रिटिश भारत पर चढ़ाई कर इम्फाल और कोहिमा में तिरंगा लहरा दिया था| इसके साथ ही नेताजी ने जापान द्वारा जीते हुए अंडमान एवं निकोबार द्वीपों को भी जापान से लेकर उनका नाम शहीद और स्वराज द्वीप का नाम दिया था|

जब यह सब घटनाक्रम हो रहा था तब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को चारदीवारी में कैद कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जापान तथा जर्मनी की एक कठुपुतली घोषित कर दिया था| नेताजी तथा उनकी आज़ाद हिन्द फौज की एक भी खबर इस देश में नहीं आने दी जाती थी| अंग्रेज़ सरकार के साथ-साथ गाँधी, नेहरु, पटेल, तथा अन्य गाँधी के अनुयायियों ने नेताजी को अपमानित करने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी थी| नेहरु ने तो उद्घोषित किया था, “ये सुभाष बाहर से सिपाहियों को लेकर भारत में आएगा, तो मैं अपने हाथ में तलवार लेकर उसका सामना करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा|” गाँधी जी ने भी खुलेआम भारत छोडो आन्दोलन के भाषण में कहा था की, “सभी व्यक्ति ब्रिटिश राज और ब्रिटिश व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं कर पाते हैं| उनके लिए ये दोनों एक ही हैं| उनकी इस नफरत ने उन्हें जापानियों का स्वागत करने के लिए मजबूर कर दिया जोकि बहुत अधिक खतरनाक है| इसका मतलब यह है कि वो लोग एक दासता को दूसरी से बदल रहे हैं| हमें इस भावना से मुक्ति पानी होगी| हमारा झगड़ा ब्रिटिश लोगों के साथ नहीं है, हमारी जंग उनके शासन के खिलाफ हैं| ब्रिटिश शक्ति को हटाने का प्रस्ताव गुस्से से नहीं आना चाहिए|”

अब यह बताइए कि ब्रिटिश हम पर राज बिना अपने निवासियों के मदद से करते थे| क्या ब्रिटिश लोग हम हिन्दुस्तानियों से नफरत नहीं करते थे? क्या हमें अपने ही देश में दास और हेय की दृष्टि से नहीं देखा जाता था? यदि किसी ने आपको गुलाम बना रखा है तो क्या आपको गुलाम बनाने वाले के खिलाफ क्रोध नहीं आएगा? क्या आप अपनी मुक्ति के लिए गुलाम बनाने वाले के दुश्मन के साथ मिलकर अपनी मुक्ति का प्रयास नहीं करेंगे? या क्या दास धर्म में अथवा नमक के बंधन में फंसकर सदा के लिए गुलाम बने रहेंगे?

क्या आप लोगों को जरा सा भी अंदाजा है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जापान सरकार के समानांतर अपनी आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना करी थी जिसे १३ देशों से मान्यता प्राप्त थी तथा जिसके पास शहीद और स्वराज (अंडमान निकोबार) द्वीपों का शासनाधिकार था| इसके साथ ही नेताजी के पास एक बैंक था जिसमें वो अपने देश से बाहर रहने वाले भारतीयों से लिया हुआ दान जमा करते थे और जब वो गायब हुए थे तो उन्होंने अपने पीछे सोने से भरे हुए २३ बड़े ट्रंक छोड़कर गए थे| यदि जापान को भारत को गुलाम बनाना होता तो वो सुभाष चन्द्र बोस को कभी भी अलग स्वतन्त्र सरकार नहीं बनाने देता| क्यूँ लोग डॉक्टर बा मा शॉ का उदहारण भूल जाते हैं जिहोने जापान की मदद से बर्मा को आज़ाद करवाया था| उस साल १९४३ में, जापान ने बर्मा के साथ फिल्लीपिंस को भी आज़ादी दी थी वो भी बिना


किसी बंटवारे, बिना सत्ता हस्तांतरण (ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर) के, तथा बिना किसी नियम या शर्तों के| हाँ इन देशों के कुछ हिस्से जरुर जापानी सेना के पास थे ताकि वो अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ सकें मगर जापानी सेना ने युद्ध में हरने की बाद वापिस जाते हुए ये हिस्से खाली कर दिए थे| भारत फ़िलीपीन्स और बर्मा की अपेक्षा अधिक मजबूत स्थिति में था क्यूंकि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द सरकार बनाकर जापान के प्रधानमंत्री के बराबर की स्थिति में थे| उनके बैंक ने जापान से अधिकारिक तौर पर कर्ज लिया था जिसे आज़ादी के बाद वापिस देना था| इसके ठीक विपरीत, बर्मा और फ़िलीपीन्स पूर्णतया जापान पर निर्भर थे क्यूंकि उनके पास ना तो कोई सेना थी, ना ही कोई सरकार, और ना ही कोई बैंक| ना सिर्फ आज़ाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर आक्रमण करने में बराबर की हिस्सेदारी की थी बल्कि आज़ाद हिन्द सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद अलग से समर्पण किया था| यदि जापान के नीचे होते तो ऐसा कभी नहीं होता|

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने रेडियो पर विभिन्न सन्देश प्रसारित किये थे और अपना साहित्य गुप्त रूप से भारत में लगभग सभी जगहों पर भिजवा कर भारतीयों से याचना की थी कि उनकी आज़ाद हिन्द फौज को रसद और सहायता देकर दिल्ली तक पहुँचने में उनकी मदद करे| मगर इस देश को लोग इतने अहसानफरामोश और कृतघ्न थे और हैं कि उन्होंने नेताजी की सूचनाओं पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया| आज़ाद हिन्द फौज सिर्फ इस लिए हार गयी थी क्यूंकि उसका भारत में से कोई भी रसद और सहायता प्राप्त नहीं हुई थी| जापान और मदद नहीं कर सकता था क्यूंकि अमेरिका ने उसकी जमीन पर हिरोशिमा और नागासाकी पर दो परमाणु बम्ब गिरा कर उसकी रीढ़ की हड्डी ही तोड़ दी थी| जापानी सैनिक आत्महत्या कर रहे थे, युद्ध से शर्मनाक वापसी कर रहे थे या वापसी के समय बिना सहायता के मर रहे थे| जापान अपनी निप्पोन सेना के सैनिकों की ही मदद नहीं कर पा रहा था| हजारों की संख्या में आज़ाद हिन्द फौज और जापान के सैनिकों की मृत्यु युद्ध तथा युद्ध से वापसी के दौरान हो गयी थी| ये सभी कहाँ गए थे? क्या वो कोई छुट्टी मनाने या दावत के लिए गए थे? नहीं वो सभी भारत को आज़ाद करवाने के मार्ग अग्रसर थे| और आजकल की जनता उन आज़ाद हिन्द और जापान के सेनानियों का कोई सम्मान ही नहीं करते हैं| आज़ाद हिन्द फौज के हजारों सैनिक मक्खियों के लार्वा यानि मगूतों के द्वारा जिन्दा खा लिए गए थे| क्या आपको पता भी है की मगूत क्या होते हैं? यदि पहले कभी इनके बारे में नहीं सुना तो यूट्यूब पर ढूंढकर विडियो देख सकते हैं|

यद्यपि आज़ाद हिन्द फौज हार गयी थी परन्तु जब इसके जवान भारत भूमि पर आये और उन्होंने देशवासियों को सत्य बताया था, तब भगवान् के लिए देश ने उनको सुना था| यही कारण था कि १९४६ में रॉयल इंडियन नेवी म्युटिनी हुयी थी जिसमें २०,००० नाविकों, २० बंदरगाहों, तथा ७८ जहाजों ने भाग लिया था|

१९४६ में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री श्रीमान क्लेमेंट अटली ने ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट (भारतीय आज़ाद कानून) प्रस्तुत करते हुए अपने भाषण में ने इस क्रांति घटनाक्रम का जिक्र किया था| अटली ने कहा था कि, “मैं इस समस्या से २० साल से बिलकुल नजदीकी तौर से जुदा हुआ हूँ और मैं कहना चाहता हूँ कि यहाँ पर सभी और से गलतियाँ हैं, लेकिन इस समय हम भविष्य को देख रहें हैं नाकि भूतकाल को पीछे जाकर देख रहे हैं| मैं माननीय से सिर्फ यह कहना चाहता हूँ| सदस्यगण, भूतकाल के परिमय तत्कालीन परिस्थिति पर नहीं लगाए जा सकते हैं| १९५६ का तापमान १९२० का तापमान नहीं है और ना ही १९३० या १९४२ का तापमान भी है|”

तो ऐसा क्या हुआ था १९४६ में? और कुछ नहीं बल्कि आज़ाद हिन्द सैनिकों के द्वारा हुए खुलासे से यह यह रॉयल इंडियन नेवी क्रांति ही शुरू हुई थी| आज़ाद हिन्द फौज के लोगों ने ब्रिटिश सेना के उन व्यक्तियों के समक्ष यह प्रकट किया था कि देशप्रेम किसी भी नमक के बंधन से से अधिक शक्तिशाली होता है| सिग्नलमैन एम्०एस० खान और पेट्टी अधिकारी तेलेग्राफिस्ट मदन सिंह ने इस क्रांति का नेतृत्व किया तथा खुद की सेना को भारतीय नौसेना (इंडियन नेशनल नेवी) कहना शुरू कर दिया था| ब्रितानिया हुकूमत ने सरदार पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना को क्रांतिकारियों से बात करने के लिए बुलाया था जिसके बाद क्रांतिकारियों ने क्रांति वापिस ले ली थी|



फिर भी उनका सन्देश एक दम पारदर्शी था कि ब्रितानिया हुकूमत अब अधिक समय तक ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे और गैसों को नियंत्रित नहीं कर सकती थी|


स्वतंत्रता संघर्ष असल में वह जवाल्मुखी है जजों सिराजुद्दौलाह और टीपू सुल्तान के साथ युद्ध में पहली बार सक्रीय हुआ था परन्तु १८५७ की प्रथम क्रांति इसका पहली बार फटना था जिसे आसानी से नियंत्रित नहीं किया जा सकता था| पुलिस, लार्ड मैकाले का फर्जी शिक्षा तंत्र, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (अपराधी नियामक कानून), तथा सिविल प्रोसीजर कोड (जनता नियामक कानून) पुरातन भारतीय समाज की रीढ़ की हड्डी तोड़ने में सफल हुए थे| रिसले का शारीर और रंग के हिसाब से हिन्दुस्तानियों का वर्गीकरण प्रयोग, आर्य-द्रविड़ियन के जैसे झूठे खुलासे, तथा अन्य फूट डालो राज करो के खेल भी कामयाब हुए| फिर भी स्वतंत्रता संग्राम रूपी जवालामुखी स्वाभिमान और आज़ादी की भूख से अधिकाधिक इंधन पा सक्रिय होते हुए फटता ही रहा| कांग्रेस, होम रूल लीग, रॉय बहादुर की उपाधि, नवयुवकों को मुफ्त में यूरोप पढने के लिए भेजना, हिन्दू धर्म के तमाम झूठों का प्रचार, राजा राम मोहन रॉय, तथा अन्य ब्रिटिश हुकूमत के हिमायती व्यक्ति और कुछ नहीं बल्कि जवालामुखी को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिशों के द्वारा लगाए हुए तथा नियंत्रित पाइप ही थे|

परन्तु फिर भी यह स्वतंत्रता जवालामुखी बिरसा मुंडा, गोपाल कृष्ण गोखले तथा गाँधी से पूर्व के क्रांतिकारियों के रुप में फटता ही रहा| महात्मा गाँधी यद्यपि अंग्रेजों द्वारा प्रस्तुत नहीं किये गए थे फिर भी वो इस स्वतंत्रता जवाल्मुखी को नियंत्रित करने वाले सबसे बड़े तथा कामयाब पाइप थे| फिर भी सवतंत्रता जवालामुखी आज़ाद हिन्द सैनिकों के आने से रॉयल इंडियन नेवी क्रांति के रूप में फट चूका था जिसने अंततः अंग्रेजों को अपनी भारत से निकासी का प्रबंध इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट (भारतीय आज़ादी कानून) १९४७ ब्रिटिश हाउस ऑफ़ कॉमन्स में पास करवाने तथा ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर (सता हस्तांतरण) की कार्यवाहियों को पूरा करने के रूप में किया था|

यदि भारतीयों और नेहरु, पटेल एवं गाँधी के साथ पूरी कांग्रेस ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के वचनों को मानकर उनकी आज़ाद हिन्द फौज को दिल्ली पहुँचाने में मदद की होती तो भारत का एक नया ही इतिहास होता| भारत को पूर्ण स्वराज्य तथा पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति होती नाकि औपनिवेशिक स्थिति की| तब आज के प्रधानमंत्री, मंत्रीगण, और राष्ट्रपति “पूर्ण स्वतंत्रता के कागजात” पर शपथ लेते हुए हस्ताक्षर करते नाकि “ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर” के कागज़ात पर मज़बूरीवश दस्तखत करते| यह ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर (सता हस्तांतरण) ना सिर्फ औपनिवेशिक स्थिति के साथ आई थी बल्कि हमारी मातृभूमि के दर्दनाक बंटवारे और सभ्जी ५६५ शाही राज्यों के पास इस अधिकार के साथ आई थी कि वो यह चुन सकें कि भारत में रहना है या पाकिस्तान में या एक अन्य राष्ट्र के रुप में रहना था|

वो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया था तथा यही क्लेमेंट अटली जोकि लेबर पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री थे और मुख्य व्यक्ति थे जब ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर (सता हस्तांतरण) भारत को सौंपा गया था|

१९७६ में ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री क्लेमेंट अटली अपने निजी दौरे पर हिंदुस्तान आये थे तथा राज भवन, कलकत्ता में मशहूर इतिहासकार रमेश चन्द्र मजुमदार की पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ़ बंगाल” के विमोचन हेतु ३० मार्च १९७६ को उपस्थित थे| वहीँ पर पी०वि० चक्रबर्ती, १९५६ में पश्चिमी बंगाल के कार्यकारी राज्यपाल तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायधीश थे, ने उनसे अंग्रेजों के भारत से जाने के बारे में पूछा था|

चक्रबर्ती ने पूछा, “अंग्रेजों ने भारत क्यूँ छोड़ा था? आखिर किस कारण ने अंग्रेजों को जल्दबाजी में भारत छोड़ने को मजबूर किया था जबकि गाँधी का भारत छोडो आन्दोलन १९४२ में बहुत पहले ही प्रक्रिया में मृत हो चूका था?

क्लेमेंट अटली ने तब भारत छोड़ने के कुछ कारण बताये और उसमें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज की गतिविधियाँ और आज़ाद हिन्द सैनिकों का वापिस आकर रॉयल इंडियन नेवी क्रांति को जन्म देना था जिसे ब्रितानिया हुकूमत पटेल और जिन्ना की मदद के बिना काबू करने में असफल रही थी|
अटली ने ने कहा था कि ब्रितानिया हुकूमत १८५७ की क्रांति के बाद तब तक भारतीय सेना पर निर्भर थी जब तक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में बनी आज़ाद हिन्द फौज ने ब्रिटिश शासन के इन मजबूत खम्भों को तोड़ नहीं दिया था|

चक्रबर्ती ने पुनः पूछा था, “ब्रिटिश हुकूमत के भारत छोड़ने के निर्णय पर महात्मा गाँधी तथा उनके १९४२ भारत छोडो एवं उसके आन्दोलनों का कितना प्रभाव पड़ा था?”

क्लेमेंट अटली ने मुस्कराते हुए एक-एक अक्षर पर दबाव डालते हुए उत्तर दिया, “मि नी म ल (M I N I M A L)|”

अब मैं अपने सभी देशवासियों से उस व्यक्ति की कीमत पूछना चाहता हूँ जिसने अपना जीवन और सबकुछ देश को आज़ाद करवाने मे

तथा आपको एक औपनिवेशिक राज्य में स्वतन्त्र महसूस करने के लिए बलिदान कर दी थी| आप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कीमत लगा सकते हैं? क्या है उनकी कीमत? सिर्फ एक ट्वीट, एक ब्लॉग, एक छोटी सी खबर, या कृत्घन सरकार या प्रधानमंत्री के द्वारा एक फेसबुक पोस्ट या ट्वीट? क्या नरेन्द्र मोदी में इतनी क्षमता है की वो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की टॉप सीक्रेट (प्रमुख गोपनीय) फाइलें खोलकर जनता के सामने रख सकें?
क्या भारत सरकार ताइवान, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इटली, जापान, इंडोनेशिया, सिंगापूर, वियतनाम, चाइना, रशिया, और अन्य देशों को उनके क्रमशः सीक्रेट आर्काइवों में पड़ी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की फाइलों को खोलने के लिए अधिकारिक कार्यालयी पात्र लिख सकती है? क्या भाजपा अपने शासन काल में बनाए गए जस्टिस मनोज मुख़र्जी आयोग की रिपोर्ट को सरकारी तौर पर स्वीकार कर सकती है
तथा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का रहस्य पूर्णरूपेण सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायधीश की अध्यक्षता में सभी तरह से अधिकार प्राप्त एक एस०आई०टी० का गठन कर सकती है?



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