Saturday 16 May 2015


इतिहास में भले ही राइट बंधुओं का नाम दुनिया का पहला विमान उड़ाने वालों के रूप में दर्ज है, जिन्होंने 1904 में पहला विमान उड़ाया था। मगर भारत में तो 7000 साल पहले ही विमान उड़ा करते थे। ये विमान न सिर्फ एक देश से दूसरे देश तक जाने में सक्षम थे बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाने की क्षमता भी इनमें थी। यह दावा कैप्टन आनंद जे बोडस ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में किया है।

विज्ञान कांग्रेस के दूसरे दिन रविवार को उन्होंने अपना विवादित लेक्चर दिया। कैप्टन बोडस एक पायलट ट्रेनिंग सेंटर से प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए हैं। इस दावे की वजह से कैप्टन बोडस को हाल ही में वैज्ञानिक समुदाय की ओर से आलोचना भी झेलनी पड़ी थी। विज्ञान कांग्रेस में ‘संस्कृत के माध्यम से प्राचीन विज्ञान’ विषय पर परिचर्चा के दौरान उन्होंने वैदिक ग्रंथों का हवाला देते हुए दावा किया कि प्राचीन भारत में विमानन तकनीक मौजूद थी।

उन्होंने कहा, ‘ऋगवेद में प्राचीन विमानन तकनीक का जिक्र किया गया है। महर्षि भारद्वाज ने सात हजार साल पहले ऐसे विमान की मौजूदगी की बात कही थी, जो एक देश से दूसरे देश जा सकता था। यही नहीं वह एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप, यहां तक कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक भी जाने में सक्षम था। उन्होंने विमान तकनीक के संबंध में 97 किताबें लिखीं थी। जबकि इतिहास में सिर्फ यही दर्ज किया गया कि राइट बंधुओं ने 1904 में पहली बार विमान उड़ाया।’ बोडस ने कहा कि महर्षि भारद्वाज ने ‘विमान संहिता’ नाम की एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें विमान बनाने के लिए जरूरी धातुओं का जिक्र है। अब हमें विमान बनाने के लिए धातुओं का आयात करना पड़ता है। युवा पीढ़ी को उनके ग्रंथों को बढ़कर धातुओं का निर्माण यहीं पर करना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि प्राचीन भारत में विमान बहुत ही ‘बड़े’ हुआ करते थे। विमान का आधारभूत ढांचा 60 गुणा 60 फुट का होता था और कई मामलों में तो यह 200 फुट से भी ऊंचा हुआ करता था। वैदिक विमानों में छोटे-छोटे 40 इंजन हुआ करते थे। प्राचीन भारतीय रडार सिस्टम को ‘रूपांकररहस्य’ कहा जाता था।

पायलटों की डाइट और ड्रेस कोड का भी जिक्र
कैप्टन बोडस का दावा है कि महर्षि भारद्वाज की किताब में विमानों का ही जिक्र नहीं है बल्कि इसमें पायलटों की डाइट के बारे में भी जानकारी दी गई है। इसके अनुसार पायलटों को एक निश्चित समय तक भैंस, गाय और बकरी का दूध पीना चाहिए। यही नहीं उनके ड्रेस कोड के बारे में भी इस ग्रंथ में लिखा हुआ है।

नासा में जताया था विरोध
नासा रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिकों ने ऑनलाइन याचिका दर्ज कर भारतीय विज्ञान कांग्रेस से इस लेक्चर को रद्द करने की भी मांग की थी क्योंकि इसमें विज्ञान को पौराणिक मिथक से जोड़ा गया है।


तर्कों पर आधारित है वैदिक भारतीय विज्ञान : जावड़ेकर
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्राचीन भारतीय विज्ञान की वकालत करते हुए कहा कि वैदिक भारतीय वैज्ञानिक थ्योरी सदियों के अवलोकन, अनुभवों और तर्कों पर आधारित है।

यहां चल रही 102वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के दूसरे दिन रविवार को ‘संस्कृत के माध्यम से भारतीय वैदिक विज्ञान’ विषय पर आयोजित चर्चा के दौरान जावड़ेकर ने कहा, ‘यह थ्योरी उपकरणों और मशीनों पर नहीं बल्कि सदियों के अवलोकन, अनुभवों और तर्कों पर आधारित है। इस ज्ञान को पहचानने की जरूरत है। यह ज्ञान आज भी प्रासंगिक है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर जर्मन व अन्य हमारी भाषा (संस्कृत) और हमारे वैदिक विज्ञान के आधार पर नए उपकरणों का उत्पादन कर सकते हैं, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? चर्चा के लिए यह विषय काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है। इस परिचर्चा का उद्देश्य पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष और शैक्षिक है।’

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘जो लोग ज्ञान के पथ पर चलना चाहते हैं, वे यह नहीं देखते कि यह कितना पुराना है। माना कि हर पुरानी चीज सोना नहीं होती, लेकिन हर पुरानी चीज कचरा भी नहीं होती। हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि विज्ञान का क्या मतलब है। मैं संस्कृत में भाषण नहीं दे सकता हूं कि लेकिन मैं अपने दिन की शुरुआत सुबह 6.55 बजे संस्कृत समाचार सुनकर ही करता हूं। अगर आप एक बार संस्कृत समझ जाएंगे, तो दूसरी भाषा भी आपको आसानी से आ जाएगी।’ उन्होंने कहा कि यहां मौजूद वैज्ञानिक समुदाय को संस्कृत भाषा के अपार कोष की ओर ध्यान देना चाहिए और इसका उपयोग मानव विकास के लिए करना चाहिए।

वैदिक विज्ञान पर हर्षवर्धन को मिला थरूर का समर्थन
वैदिक विज्ञान को लेकर छिड़ी बहस में केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को कांग्रेस सांसद शशि थरूर का समर्थन मिल गया है। हर्षवर्धन ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में कहा था कि बीजगणित और पाइथागोरस प्रमेय की शुरुआत भारत में हुई थी, लेकिन बाद में दूसरों ने इसका श्रेय ले लिया। इसके समर्थन में थरूर ने ट्वीट कर कहा कि हिंदुत्व बिग्रेड की वजह से प्राचीन भारतीय विज्ञान की वास्तविक उपलब्धियों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्धन को पता होना चाहिए कि वह सही थे। मैंने 2003 में भी इस विषय पर लेख लिखा था। उन्होंने यह भी लिखा, ‘गणेश की प्लास्टिक सर्जरी की थ्योरी बेतुकी है, लेकिन सुश्रुत दुनिया के पहले सर्जन थे।


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