Saturday 16 May 2015

आप पार्टी का सच्च


गजेन्द्र किसान की आत्महत्या

गजेन्द्र किसान की आत्महत्या, आत्महत्या नहीं हत्या है क्यूंकि आत्म हत्या की कोशिश उस किसान गजेन्द्र ने सबके सामने की, किसी ने नहीं रोका। घटनास्थल पर सबसे ज्यादा संख्या आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की थी – हजारों में, उसके बाद 20-25 के आसपास गेस्ट टीचर थे, फिर उनसे पीछे या बीच में 70-80 मीडियाकर्मी खड़े थे|

दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी को रैली की मंजूरी नहीं दी थी|

ध्यान रहे दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी को रैली की मंजूरी नहीं दी थी| यदि एक आम सभा या रैली की अनुमति नहीं ली जाती है तो दिल्ली पुलिस के रक्षा बेडा, इमरजेंसी व्हीकल्स, तथा अन्य प्रबंधन के इंतजाम वहां नहीं व्यवस्थित नहीं किये जाते हैं| आम आदमी पार्टी की सरकार होने के कारण तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री के रैली में होने के कारण ही वहां कुछ ही पुलिसकर्मी मौजूद थे जिनके पास उपरोक्त व्यवस्थाएं हाथोंहाथ उपलब्ध नहीं थी|

अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी पहले भारतीय संसद का घेराव करना चाहती थी मगर धारा १४१ लगी होने के कारण ऐसा नहीं हो पाया| तब दिल्ली पुलिस ने उन्हें तत्काल ट्रैफिक पुलिस से बात कर रामलीला मैदान में रैली करने की लिखित इजाजत करने को कहा| साथ ही दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा कि हमें इनपुट मिली है कि कुछ अप्रिय घटना हो सकती आप पूरी मंजूरी लेकर ही रामलीला मैदान में रैली करें, हम पूरी जिम्मेदारी लेंगे| मगर आम आदमी पार्टी के कानों पर जूँ नहीं रेंगी|

आम आदमी पार्टी ने पहले तो जन्तर मंतर को २३ अप्रैल २०१५ को रैली वाले दिन ही अपनी रैली करने के लिए चुना, दिल्ली पुलिस से बात कर मंजूरी लेने के बजे इसकी सूचना इसी दिन मीडिया को दे दी गयी| साथ ही रैली की पूर्व संध्या यानि २२ अप्रैल २०१४ को आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली सरकार के लैटर पैड पर एक पत्र लिख दिल्ली पुलिस को मीडिया से दूर रखने के लिए कहा| क्या यह कोई पूर्वनियोजित योजना का अंदेशा था?

नैतिक सवाल

यदि कोई किसी के समक्ष या पूरी भीड़ के सामने आत्महत्या कर रहा हो, तो क्या आप पहले उसका रजिनैतिक फायदा लेने की सोचेंगे, उससे सवाल जवाब करेंगे कि आत्म हत्या क्यूँ कर रहे हो या उसे आत्महत्या करने से रोकोगे? फैसला आपका?

मगर इस तथाकथित रैली में एक राजनैतिक पार्टी एवं उसके कार्यकर्ताओं ने एक किसान को आत्महत्या करने दिया या उसकी आत्महत्या को अपनी मूक सहमती दी| अब इस पर जनता क्या बोलती या सोचती है यह उसको सोचना है|

इस घटना के बाद लोगो अपने परिवारवालों,  रिश्तेदारों और मित्रों को ऐसी महा रैलियों में भेजने से रोकेंगे, क्या पता कि ऐसा दुबारा हो जाए?

क्या ऐसा पहले कभी हुआ है?

नहीं, ऐसा भारत की राजनीति में पहली बार हुआ है कि एक राजनैतिक पार्टी की रैली में ऐसी आत्महत्या किसी किसान या किसी अन्य व्यक्ति ने की हो| किसी अप्रिय घटना जैसे कि आतंकवादी हमले, दुश्मनों के हमले या भीड़भाड़ की वजह से भगदड़ होने पर रैली को तुरंत स्थगित किया जाता है|

ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राजनैतिक पार्टी ने अपनी रैली में किसी को विशेष तौर पर बुलाया हो और उसकी लाश वापिस गयी हो|

एक याद

हमें याद है कि भाजपा की मेरठ में रैली हुयी थी जिसमें तब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और वर्तमान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वहाँ मुख्य तौर पर आमंत्रित थे| उनके मंच से ५०० मीटर दूर एक बिजली के खम्भे पर तीन युवक चढ़े हुए थे| मोदी ने मंच से कहा कि आप तीनों नीचे उतर आयें नहीं तो यह रैली शुरू नहीं होगी और उन्हें चोधरी चरण सिंह की शपथ भी दी थी| उनके बोलते ही कुछ भाजपाई कार्यकर्त्ता और पुलिस सक्रीय हुयी और वो लोग नीचे उतर आये| अगर वो नीचे नहीं उतरते तो मोदी को पैदल चलकर खम्भे तक जाने में शर्म नहीं आती क्यूंकि यही आरएसएस के और भारतीयों के असली संस्कार हैं|

यदि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी कुछ ऐसा ही करते तो शायद आज परिदृश्य अलग होता और उनका भी नाम रोशन होता| मगर, हा दैव| ऐसा कुछ नहीं हुआ|

राजनीति की अंध महत्वकांक्षा

उस किसान की आत्महत्या की कोशिश और मरने के बाद भी रैली में अरविन्द केजरीवाल का भाषण चलता रहा। सुसाइड नॉट बरामद होने पर कुमार विश्वास ने इसे मंच से पढ़कर सुनाया और पुलिस एवम् भाजपा को इसका दोषी ठहराया। गजेन्द्र किसान के मित्र का कहना है कि वो आत्महत्या कर ही नहीं सकता। आम आदमी पार्टी के बुलावे पर वो खुद पैसे लगाकर अपने साथ कई लोगों को ले गया था।


जब एक ऐसे किसान की आत्महत्या, जो किसी और राज्य का हो जहाँ विरोधी पार्टी का शासन है, एक राजनैतिक पार्टी की उस रैली में, जिससे उस पार्टी बहुत लाभ होना है, पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं और समर्थकों के सामने हो और जिसके मरने के बाद भी रैली में भाषण जारी रहे वो भी उसका सुसाइड नोट पढ़; तो उस किसान की

जो किसी और राज्य का हो जहाँ विरोधी पार्टी का शासन है, एक राजनैतिक पार्टी की उस रैली में, जिससे उस पार्टी बहुत लाभ होना है, पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं और समर्थकों के सामने हो और जिसके मरने के बाद भी रैली में भाषण जारी रहे वो भी उसका सुसाइड नोट पढ़; तो उस किसान की मौत का सबसे बड़ा फायदा रैली करने वाली पार्टी को ही होता है।

कायापलट

जो आम आदमी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं पर इतना भरोसा करती है कि उन्हें वोटिंग बूथ की सुरक्षा के लिए पुलिस के समानांतर तैनात करती है ताकि वोटिंग बूथ की सुरक्षा की जा सके, मगर उसके कार्यकर्त्ता एक आदमी को पेड़ पर चढाने से रोकते नहीं है और उसे फांसी लगाने की कोशिश करने पर पेड़ से उतारते नहीं है|

जिस आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद का दावेदार बिजली के खम्भों पर चढ़ कर बिजली के कनेक्शन चालू या बंद कर सकता है ताकि मुख्यमंत्री बन सके, वो बहुमत पाकर मुख्यमंत्री बनने के बाद ४० मीटर दूर पेड़ पर चढ़े व्यक्ति को पेड़ से उतारने के लिए कुछ कदम पैदल भी नहीं चल सकता|



गजेन्द्र किसान की आत्महत्या से जुड़े कुछ सिलसिलेवार तथ्य

पहले तो आम आदमी पार्टी दिल्ली पुलिस को नहीं मानकर रामलीला मैदान की बजाय जंतर मंतर चुनते हैं।
दिल्ली पुलिस को लिखते हैं कि रैली स्थल से मीडिया को दूर रखा जाये।
आम आदमी पार्टी दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके गजेन्द्र सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर विशेष न्योते से दिल्ली बुलाती है।
गजेन्द्र अपने परिवार को कहता है कि आप कि हाई कमांड से यहां खेती की असली तस्वीर बताऊंगा।
गजेन्द्र उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से मिलने उनके निवास स्थान जाता है, पर नहीं मिल पाता।
गजेन्द्र जंतर मंतर पहुँचता है वहां आप कार्यकर्ताओं से मुख्यमंत्री से मिलने के लिए कहता है।
आप के कार्यकर्त्ता ताली बजा बजा कर उसे उत्साहित कर मंच के सामने के पेड़ पर चढ़ाते हैं वो भी झाड़ू और चुनावी चिन्हों के साथ।
गजेन्द्र दो घंटे तक चिल्लाता रहता है कि केजरीवाल को बुलाओ नहीं तो निचे कूद जाऊंगा।
केजरीवाल जो बिजली के खंभे से चढ़ने से लेकर पद यात्रा तक करते हैं, मात्र 50 मीटर चल कर किसान की बात नहीं सुन सकते।
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता तब तक आगे बढ़ आते हैं, पेड़ के पास विरोध कर रहे गेस्ट टीचर खड़े हो जाते हैं जो गजेन्द्र को निचे उतरने को कहते हैं।
गेस्ट टीचर सफल नहीं होते, कार्यकर्त्ता उन्हें पेड़ से हटा गजेन्द्र के लिए तालियां बजाते हैं।
दिल्ली पुलिस के कर्मचारी कार्यकर्ताओं को रोकते हैं कि तालियां मत बजाओ।
दिल्ली पुलिस फायर ब्रिगेड को फ़ोन कर सीढ़ी का इंतेज़ाम करने की कोशिश करती हैं।
दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों को पेड़ तक कार्यकर्त्ता नहीं पहुँचने देते।
अब तक कुमार विश्वास मंच से गजेन्द्र को देख चुके होते हैं और माइक पर कहते हैं कि पुलिस उसे उतरे मगर कार्यकर्ताओंं को पेड़ के पास से हटने के लिए नहीं कहते।
जब गजेन्द्र लटक रहा होता है तब कुमार विश्वास अपना इस साल का प्रसिद्ध डायलॉग माइक पर बोलते हैं वो भी इशारे के साथ – “लटक गया” (जी न्यूज़ पर दिखाया गया विडियो)
जो सुसाइड नोट मिलता है उस पर किसी और की लिखावट होती है क्यूंकि गजेन्द्र की बेटी मना कर चुकी है कि ये लिखावट गजेन्द्र की नहीं है और उस पर पहले उपेन्द्र नाम लिखा है फिर काट कर गजेन्द्र नाम लिखा है।
गजेन्द्र का सुसाइड नोट सबके सामने माइक पर पढ़ कर सुनाया गया।
क्यों भाई सुसाइड नोट तो तुम्हे और तुम्हारे कार्यकर्ताओं को पुलिस से पहले दिख गया मगर आत्म हत्या करता किसान तुम्हें नहीं दिखा?

गजेन्द्र के फांसी पर लटकने की कोशिश और मरने के बाद भी केजरीवाल और उनकी प्रसिद्ध मंडली भाषण देना और रैली करना बंद नहीं करती।
केजरीवाल कहते हैं कि हस्पताल में जाकर देख लेंगे।
किसान की मृत्यु 2:55 सांय पर घोषित होती है मगर आपिये नेतागण अलका लाम्बा और अन्य 2:20 से ही किसान पर ट्वीट से संवेदना व्यक्त करना शुरू कर देते हैं।
गजेन्द्र की मौत के बाद किसी भी राजनेता को उनसे नहीं मिलने दिया जाता, अजय माकन को हस्पताल से आप कार्यकर्त्ता विरोध कर भगा देते हैं।
बतौर प्रत्यक्षदर्शी कोई आम आदमी पार्टी का नेता या कार्यकर्त्ता गजेन्द्र के बेटे को जो उनकी मौत के बाद भी रैली स्थल पे था, उसे सांत्वना देना तो दूर बात तक नहीं करते।
आम आदमी पार्टी एक राजस्थान के किसान को मरने के बाद 10 लाख तो दे रही है मगर जो किसान अभी भी राजस्थान में बिना सहायता के जीवन यापन कर रहे हैं और आत्म हत्या की कगार पर हैं, उन्हें अपनी रैलियोंं में बुला तो रही है मगर कोई एक रुपये की सहायता नहीं कर रही है।
जब मामला दिल्ली पुलिस में है और उसकी क्राइम ब्रांच इसकी जांच कर रही है तो खुद को दोषी ठहराए जाने से बचने के लिए बिना अधिकार से डिप्टी मजिस्ट्रेट से इसकी अलग जांच करने को कहती है।
आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता खुद गजेन्द्र की खुदखुशी के चीथड़े उड़ा संसद एवं विधानसभा से लेकर सड़क और फेसबुक तक उसका राजनैतिक फायदा लेने में लगे है, मगर दूसरी पार्टियों को ऐसा करने से रोक रहे हैं।
ताज़ा खबर – आवाज़ का राज

ताज़ा समाचार आने तक दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चौकाने वाले खुलासे किये हैं| गजेन्द्र के मोबाईल के आखिरी लोकेशन कुरुक्षेत्र पाई गयी है जबकि उसका फ़ोन 10 दिन पहले बंद हो गया था| क्या गजेन्द्र के पास मरने के वक्त खुद का फ़ोन था? इसके अलावा दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने नवभारतटाइम्स को बताया कि खुदखुशी के इस केस में वो दो आवाजें महतवपूर्ण हैं जब कोई पहले कहता है कि लटक जा… और बाद में लटक गया…| दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सभी चैनलों से उस दिन की रॉ फुटेज मांगी है|

मरने से पहले लखपति

इसके अलावा गजेन्द्र की बहन ने कहा है कि “जब गजेन्द्र से बात हुयी थी तब उसने कहा था कि उसके पास डेढ़ लाख रुपये हैं जो भतीजी की शादी में काम आयेंगे|” जो किसान kafi  समय से खेती ना कर रहा हो और उसका पैसे को लेकर झगडा हुआ हो, उसके पास मरने से ठीक पहले इतनी राशि होना किसी साजिश की तरफ ही इशारा करता है|

चलते चलते

अजय सीठा जी, जो गजेन्द्र के मित्र के मित्र हैं, फेसबुक पर लिखते हैं कि –

“गजेन्द्र के लिए आत्म हत्या करने की स्तिथि कभी आ ही नहीं सकती थी” – यह कहना है मेरे असीम मित्र कार्तिक बना का , मृतक गजेन्द्र उनके मित्रों में एक थे …… गजेन्द्र सिंग सोलंकी (कल्याणवत ) ग़रीब किसान नहीं बल्कि साफे के कारोबारी और गाँव के ज़मींदार परिवार से थे। स्वाभाव से उत्साही गजेन्द्र सिर्फ अपने साथ गाँव के कुछ किसानो को आम आदमी पार्टी के बुलावे पर अपने खर्च पर दिल्ली लाये थे.सु साइड नोट वाली बात मनघडंत है , उनकी आत्म हत्या करने का कोई कारण ही नहीं बनता बस एक चीज़ जो उनके व्यवहार में थी की वे किसी के लिए कुछ भी कर जाने के लिए तैयार रहते थे , उन्हें ऎसा करने के लिए उकसाया गया होगा , या वो बस डराने / ध्यान आकर्षण कराने के लिए ऎसा कर रहे होंगे / या पेड़ की डाली से उनका पाँव फ़िसला होगा । ज्ञात रहे कि गजेन्द्र सोलंकी सवाई मान सिंग परिवार से सम्बद्ध भवानी सिंग जी और सचिन पाइलट परिवार के करीबी थे !!”


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